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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तर प्रदेश सरकार ने लम्बे समय से अधूरी पड़ी जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र (जेपीएनआइसी) परियोजना को फिर से जीवित करने का फैसला किया है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में शुरू हुई इस परियोजना को अब लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) को सौंपा जाएगा। इसके साथ ही पहले बनी जेपीएनआइसी सोसाइटी को भंग कर दिया गया है, जिसे समाजवादी पार्टी सरकार ने संचालन के लिए बनाया था।

परियोजना की शुरुआत और खर्च का सफर
साल 2013 में शुरू हुई इस परियोजना की शुरुआती लागत 421.93 करोड़ रुपये थी, लेकिन समय के साथ कई बार बजट में बदलाव किया गया। 2016 में यह लागत बढ़कर 864.99 करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जिसमें से 821.74 करोड़ रुपये पहले ही खर्च हो चुके हैं। फिर भी यह प्रोजेक्ट अधूरा रह गया।

भ्रष्टाचार और जांच का दौर
समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा बनाई गई जेपीएनआइसी सोसाइटी के माध्यम से ठेकों और फंड में अनियमितताएं सामने आईं। जब योगी सरकार सत्ता में आई, तो इस परियोजना की थर्ड पार्टी जांच कराई गई। राइट्स लिमिटेड द्वारा की गई जांच में कई अनियमितताओं का खुलासा हुआ। इसके बाद दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई और संबंधित वेंडर की 2.5 करोड़ रुपये की सिक्योरिटी भी जब्त कर ली गई।

फाइव स्टार सुविधा वाला केंद्र, लेकिन अधूरा
जेपीएनआइसी को एक बहुपरियोजना केंद्र के रूप में विकसित किया जाना था। इसमें लग्जरी होटल, स्पा, रेस्टोरेंट, ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल, मल्टीलेवल पार्किंग और जयप्रकाश नारायण का संग्रहालय शामिल था। लेकिन आज यह सब ढांचा केवल नाम मात्र का रह गया है—सुरक्षा कारणों से बंद और निर्माण अधूरा।

अब पीपीपी माडल से होगा विकास
सरकार ने अब इस अधूरी परियोजना को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) माडल से पूरा करने का निर्णय लिया है। निजी एजेंसी इसके फिनिशिंग और संचालन का जिम्मा लेगी। इससे सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा और केंद्र को एक नया जीवन मिलेगा।

अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समय-समय पर इस परियोजना को लेकर सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। पिछले साल अक्टूबर में वे खुद इस अधूरी इमारत तक पहुंच गए थे और आठ फीट ऊंचा गेट लांघकर जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया था।