
Prabhat Vaibhav, Digital Desk: भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख ने 8 जून, 2025 को घोषणा की कि प्रोजेक्ट कुशा रूस के एस-500 के बराबर है और क्षमताओं में एस-400 से आगे है। यह परियोजना भारत की वायु रक्षा के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकती है। इसे स्टील्थ जेट, ड्रोन, विमान और MAC-7 एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
प्रोजेक्ट कुशा को DRDO द्वारा विकसित किया जा रहा है और यह स्वदेशी लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणाली है। इसे विस्तारित रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (ERADS) या प्रेसिजन-गाइडेड लॉन्ग-रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल (PGLRSAM) के नाम से भी जाना जाता है। प्रोजेक्ट कुशा 80 किमी MR-SAM और 400 किमी S-400 के बीच की खाई को पाटता है। यह आकाश और बराक-8 जैसी प्रणालियों के साथ भी एकीकृत है।
पाकिस्तान और चीन से उत्पन्न खतरों का सामना करने में सफलता मिलेगी।
यह आत्मनिर्भर भारत पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय खतरों, खासकर पाकिस्तान और चीन से सुरक्षा को मजबूत करके भारत के हवाई क्षेत्र को हवाई खतरों से बचाना है। मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद इस परियोजना ने ध्यान आकर्षित किया, जहाँ वायु रक्षा प्रणाली ड्रोन और मिसाइलों के खिलाफ महत्वपूर्ण साबित हुई और कुशा जैसी स्वदेशी क्षमताओं की आवश्यकता को बल मिला। यह प्रणाली 2028-2029 समय सीमा तक भारतीय वायु सेना (IAF) और भारतीय नौसेना के लिए चालू होने की उम्मीद है।
इस प्रणाली की विशेषता क्या है?
प्रोजेक्ट कुशा की मुख्य ताकत इसकी तीन-स्तरीय इंटरसेप्टर मिसाइल प्रणाली है, जिसे विभिन्न दूरी पर कई हवाई खतरों को बेअसर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। M1 इंटरसेप्टर (150 किमी) मिसाइल कम दूरी पर लड़ाकू जेट, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों जैसे खतरों को निशाना बनाएगी।
इसका कॉम्पैक्ट 250 मिमी व्यास वाला मारक वाहन दोहरे पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर और थ्रस्ट वेक्टर नियंत्रण से सुसज्जित है, जो उच्च गतिशीलता और सटीकता सुनिश्चित करता है, तथा इसे सामरिक मुठभेड़ों के लिए आदर्श बनाता है।
विस्तारित-रेंज एम2 इंटरसेप्टर (250 किमी) मिसाइल उन्नत लक्ष्यों को निशाना बना सकती है, जिसमें एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AEW&CS) और एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM) शामिल हैं। इसमें M1 का 250 मिमी किल व्हीकल शामिल है, जो मध्यम-दूरी के खतरों के खिलाफ चपलता और सटीकता के लिए अनुकूलित है।
इस प्रणाली में सबसे लम्बी दूरी की मिसाइल, एम3 इंटरसेप्टर (350-400 किमी), बड़े विमानों और संभावित छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (एसआरबीएम और आईआरबीएम) का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
सिस्टम क्षमताएं
इन इंटरसेप्टर में एक ही बार में मार गिराने की प्रभावशाली संभावना 85% है, जो पांच सेकंड के अंतराल पर दो मिसाइलों को साल्वो मोड में लॉन्च करने पर 98.5% तक बढ़ जाती है। मिसाइलें हिट-टू-किल (HTK) तकनीक का उपयोग करती हैं, जो यूएस THAAD या SM-3 जैसी उन्नत प्रणालियों जैसे विस्फोटक वारहेड्स के बजाय गतिज ऊर्जा पर निर्भर करती है।
रडार और इन्फ्रारेड मार्गदर्शन को संयोजित करने वाली दोहरी-सीकर प्रौद्योगिकी, स्टेल्थ विमान और क्रूज मिसाइलों जैसे कम रडार-हस्ताक्षर वाले लक्ष्यों को ट्रैक करने और नष्ट करने की उनकी क्षमता को बढ़ाती है।