उत्तराखंड के शांत और दूरस्थ धारी-डोबा गांव के पास एक ऐसी प्राचीन गुफा मिली है, जो आज स्थानीय लोगों की आस्था और रहस्य दोनों का केंद्र बन गई है। इस गुफा के भीतर से दूध जैसी सफेद धाराएं बहती हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं।
गुफा के अंदर प्रवेश करते ही ठंडी हवा का एहसास और दीवारों पर बनी प्राकृतिक आकृतियां मन को श्रद्धा और आश्चर्य से भर देती हैं। अंदर कई संकरे रास्ते हैं, जो आगे जाकर एक बड़े गुंबदनुमा हाल में मिलते हैं। वहां प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंगों से निरंतर सफेद धार बहती दिखाई देती है।
गांव के बुजुर्ग हर सिंह बताते हैं कि यह गुफा बहुत प्राचीन है, संभवतः सतयुग काल की। स्थानीय लोगों के अनुसार, सतयुग में एक संत बाबा यहां तपस्या करने आए थे। कहा जाता है कि उन्होंने इस गुफा में खीर बनाई थी, जिसके बाद से पत्थरों से दूध जैसी धाराएं बहने लगीं — और यह दृश्य आज भी वैसा ही है।
गांववालों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से इस गुफा के संरक्षण और विकास की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीणों का मानना है कि अगर यहां तक सड़क, रोशनी और अन्य सुविधाएं विकसित की जाएं, तो यह जगह एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल बन सकती है।
भक्तों की भीड़ पहुंची देखने
गुफा की खबर फैलते ही आसपास के गांवों से भक्त और साधु-संत वहां पहुंचने लगे। नागा बाबा देवगिरी महाराज, पुजारी दयाल पांडे, खड़क सिंह टंगड़िया, राजेंद्र सिंह, दीवान सिंह, सुमित टंगड़िया, भरत, हरीश, नीरज, और सागर जैसे श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना कर रहे हैं। नागा बाबा देवगिरी ने तो यहीं धुनी रमाई है और अब प्रतिदिन आरती की जाती है।
लोगों का मानना है कि यह गुफा सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्रकृति के रहस्यों को समेटे एक जीवंत चमत्कार है।




