उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. ऐसा लगता है कि उसकी तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं. सियासी रणनीति बनने लगी है. हर पार्टी खुद को तैयार करने में जुट गई है. चुनावों को ही ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिमंडल में बदलाव और विस्तार दोनों होने वाला है. फिलहाल जो परिदृश्य है, उसमें छोटी पार्टियों की पौबारह लग रही है, बड़े दल चुनावों में अपने फायदे के मद्देनजर उन्हें लुभाने में जुट गए हैं.
इसका पहला संकेत तो योगी मंत्रिमंडल के संभावित बदलाव और विस्तार में मिल ही जाएगा. केवल सत्ताधारी बीजेपी ही नहीं बल्कि अन्य दल इन छोटे दलों को अपनी ओर खींचने की कोशिश में जुटे हैं. योगी मंत्रिमंडल के विस्तार जो दो नए नाम मंत्री पद के लिए उभर रहे हैं, वो अपना दल से आशीष पटेल और निषाद पार्टी से संजय निषाद का है. आशीष अपना दल से हैं तो संजय आते हैं निषाद पार्टी से. फिलहाल ये दोनों पार्टियां बीजेपी की सहयोगी पार्टियां भी हैं.
अपना दल बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव जरूर लड़ता है लेकिन अपने चुनाव चिन्ह पर वहीं निषाद पार्टी ने खुद का एक तरह से बीजेपी में विलय कर लिया है, वो बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ते हैं. हाल में जब मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तब भी यूपी चुनावों के मद्देनजर सूबे की छोटी पार्टियों का खयाल रखा गया.
खास वोट बैंक पर पकड़
अपना दल और निषाद पार्टी यूपी के छोटे दल हैं लेकिन एक खास वोट बैंक पर दोनों की अपनी पकड़ है, इसीलिए बीजेपी के लिए आने वाले विधानसभा चुनावों में दोनों दल जरूरी भी हैं. निषाद पार्टी का गठन मुश्किल से 05 साल पहले वर्ष 2016 में हुआ था. वो आमतौर पर प्रदेश की 18 फीसदी आबादी वाले निषाद की अगुवाई करने का दावा करती है. वोट बैंक के हिसाब से देखें तो ये अच्छा खासा वोट बैंक है.
योगी मंत्रिमंडल विस्तार में दिखेगा असर
अब अगर यूपी में योगी मंत्रिमंडल के विस्तार में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद को कैबिनेट में जगह मिलती है तो साफ है बीजेपी निषाद वोटबैंक को अपने साथ रखने के लिए निषाद पार्टी को दूर तो नहीं कर सकती. यूपी में जिस तरह जातीय जागरूकता का प्रदेश की राजनीति में बोलबाला हुआ है, उसके साथ पिछले कुछ सालों में कुछ नई पार्टियों का जन्म भी हुआ है. पिछले चुनावी नतीजे भी बताते हैं कि इन पार्टियों को नजरंदाज करने की जहमत बड़ी पार्टियां नहीं उठा सकतीं.
निषाद पार्टी और बीजेपी की नजदीकियां
अगर बीजेपी निषाद को मंत्री बना रही है तो जाहिर है कि उसकी राज्य के उस वोट बैंक पर है, जो आने वाले चुनावों में जीत-हार या प्रदर्शन का एक अहम फैक्टर बन सकता है. निषाद पार्टी वर्ष 2018 तक समाजवादी पार्टी के करीब थी लेकिन फिर वो बीजेपी के साथ चली गई. भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) के अलावा निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया था. निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाक्टर संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते. हाल के उपचुनावों में संजय निषाद भाजपा के साथ खुलकर सक्रिय थे. उसका असर प्रदेश की राजनीति में नजर भी आने लगा है.
जातियों की माइक्रो लेवल पर सियासत
यूपी में छोटी छोटी जातियों या माइक्रो बैकवर्ड पालिटिक्स करने वाली पार्टियों का उभार नया है और वो इसी कारण उभरी भी हैं कि वो किसी खास जाति या समुदाय की राजनीति करती हैं. वो अपने वर्ग में पकड़ का दावा भी करती हैं. लेकिन अकेले उनके पास भी इतनी ताकत नहीं है कि वो चुनाव जीत सकें, लिहाजा उन्हें किसी बड़ी पार्टी के साथ जाना ही होगा. यूपी की सियासत में जो स्थिति आ गई है, उसमें बड़ी पार्टियां भी ऐसे छोटे दलों की अहमियत को बखूबी समझती हैं.
महान दल किस ओर
यूपी में महान दल के नाम से उभरी पार्टी मौर्या और कुछ पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उसके अध्यक्ष केशव देव मौर्या ने हाल में दावा किया कि हम जिस पार्टी में शामिल हो जाएंगे, उसके लिए विनिंग फैक्टर बन सकते हैं. ये दल प्रदेश की 100 सीटों पर अपने असर की बात करता है. पिछले दिनों दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्या ने पीलीभीत से पदयात्रा भी निकाली. इस दल का असर मौर्या, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जातियों पर बताया जाता है, जो पूरे प्रदेश में फैले हुए हैं. खबरें बता रही हैं कि फिलहाल महान दल का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर है.
समाजवादी पार्टी अबकी बार क्या करेगी
उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार ये कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी अब छोटे दलों से ही गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी. पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन नतीजे उनके पक्ष में अच्छे नहीं रहे थे. इसके बाद 2019 में समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाया लेकिन अबकी बार प्रदर्शन और खराब रहा.