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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक संवेदनशील पारिवारिक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए एक नाबालिग बच्चे की कस्टडी उसकी ऑस्ट्रेलियाई मां को सौंपने का निर्देश दिया है। जस्टिस राजेश भारद्वाज की एकल पीठ ने कहा कि बच्चे को भारत में रोके रखना न केवल नैतिक रूप से अनुचित है, बल्कि विदेशी अदालत के आदेश की भी अवहेलना है।

यह मामला तब सामने आया जब बच्चे के नाना (जो ऑस्ट्रेलिया के नागरिक हैं) ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। उन्होंने अदालत से अपील की कि बच्चे को उसकी मां के पास लौटाया जाए। दंपती के बीच पहले ही तलाक हो चुका है, और ऑस्ट्रेलिया की फैमिली कोर्ट ने दोनों बच्चों (बेटा और बेटी) की कस्टडी मां को सौंप दी थी, पिता को केवल मिलने का अधिकार मिला था।

कोर्ट के आदेश के अनुसार, पिता को अपने बेटे को 8 जनवरी से 2 फरवरी तक भारत लाने की अनुमति मिली थी। मगर तय समय के बाद उन्होंने बेटे को वापस नहीं भेजा और बेटी को अकेले भेज दिया। इसके बाद मां ने ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट में अपील की और वहां की अदालत ने भारत सरकार और पुलिस से सहयोग करने को कहा ताकि बच्चा सुरक्षित लौट सके।

पिता की ओर से यह दलील दी गई कि भारत हेग कन्वेंशन का हिस्सा नहीं है, इसलिए विदेशी आदेश मान्य नहीं। मगर हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चों का भविष्य भावना के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। बच्चे से हुई बातचीत से भी यह संकेत मिले कि उसे जवाब रटाए गए हैं, जिससे उसके प्रभावित होने का संदेह होता है।

कोर्ट ने कहा कि भले ही भारत में उसका वर्तमान ठीक हो, लेकिन दीर्घकालिक रूप से उसकी परवरिश ऑस्ट्रेलिया में अधिक सुरक्षित और संतुलित होगी, जहां उसकी मां पूरी निष्ठा से केवल बच्चों की भलाई में जुटी हुई हैं।

इसलिए हाई कोर्ट ने पिता को निर्देश दिया कि वह बेटे की कस्टडी और सभी यात्रा दस्तावेज मां को सौंपे। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चा कोई वस्तु नहीं है जिसे एक अभिभावक से दूसरे के पास ऐसे ही सौंप दिया जाए, बल्कि उसे दोनों माता-पिता के प्यार, देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है।