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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म हो रहा है, बिहिया बाजार में गमछे की मांग अचानक बढ़ गई है।
भोजपुरी अस्मिता का प्रतीक रहा यह गमछा अब चुनावी जोश और पार्टी पहचान का हिस्सा बन गया है।
उम्मीदवारों के समर्थक से लेकर आम मतदाता तक, सभी अपने पसंदीदा दल के रंग का गमछा कंधे पर डालकर
सियासी रंग में रंगे नजर आ रहे हैं।

चुनावी प्रचार में गमछा बना पहचान का प्रतीक

अब चुनावी सभाओं और प्रचार में प्रत्याशियों का स्वागत गमछे से किया जा रहा है।
कई उम्मीदवारों के पास समर्थकों द्वारा भेंट किए गए गमछों का अंबार लग गया है।
वहीं, प्रत्याशी भी ये गमछे अपने कार्यकर्ताओं में बांट रहे हैं, जिससे यह
राजनीतिक जुड़ाव का प्रतीक बन गया है।

चार–पांच थोक व्यापारी कर रहे बंपर बिक्री

बिहिया नगर में इस समय चार से पांच होलसेल दुकानदार गमछा बेचकर मालामाल हो रहे हैं।
दुकानदारों ने अनुमान लगाया है कि चुनाव खत्म होने तक गमछों की बिक्री कई गुना बढ़ जाएगी।
राजद के लिए हरा, जनसुराज और जनता जनशक्ति पार्टी के लिए पीला,
भाजपा के लिए भगवा, जबकि बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी के लिए नीला रंग
सबसे ज्यादा बिक रहा है।

थोक कीमत 60 से 80 रुपये प्रति गमछा बताई जा रही है।

बिहिया के थोक व्यापारी मो. असगर के मुताबिक,
“पार्टियों के कार्यकर्ता 10 से लेकर 200 पीस तक गमछे खरीद रहे हैं।
लाल, केसरिया और हरे रंग के गमछे सबसे ज्यादा बिक रहे हैं, जबकि
नीले रंग की मांग थोड़ी कम है।”

भोजपुरी संस्कृति से राजनीति तक पहुंचा गमछा

गमछा सदियों से भोजपुरी समाज की पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक रहा है।
यह न सिर्फ उपयोगी वस्त्र है बल्कि संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक भी है।
कोरोना काल में भी गमछा एक अहम साधन बना जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
लोगों से मुंह ढकने के लिए गमछे का उपयोग करने की अपील की थी।

अब यही गमछा राजनीति की पहचान बन चुका है।
छोटे कस्बों में जब कोई युवा कंधे पर गमछा डालकर निकलता है,
तो लोग कहते हैं – “अब ये नेता बन रहा है।”

यही कारण है कि आज यूपी-बिहार के हर उभरते नेता के पास गमछा जरूरी हो गया है।
गमछा अब सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि नेतृत्व, पहचान और जनसंवाद का प्रतीक बन गया है।