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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सिख धर्म के अत्यंत पावन तीर्थ हेमकुंड साहिब के कपाट रविवार सुबह 9:30 बजे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और भक्ति भाव से पूरा क्षेत्र गुरुबाणी की गूंज से ओतप्रोत हो गया।

सात कुंतल फूलों से सजा धाम

कपाट खुलने के इस पावन अवसर को भव्य बनाने के लिए हेमकुंड साहिब को सात कुंतल फूलों से सजाया गया है। इस सजावट में स्थानीय और विदेशी फूलों का सुंदर संयोजन किया गया, जिससे पूरा धाम स्वर्ग समान प्रतीत हो रहा है।

4500 से अधिक श्रद्धालु हुए शामिल

इस शुभ अवसर पर धाम में 4,500 से अधिक श्रद्धालु मौजूद रहे। श्रद्धालुओं का पहला जत्था पंच प्यारों की अगुआई में घांघरिया पहुंचा, जहाँ से वे कठिन बर्फीले रास्ते से होकर हेमकुंड साहिब पहुंचे।

बर्फ के बीच तीन किमी की कठिन यात्रा

हेमकुंड साहिब में अभी भी चार से पांच फीट बर्फ जमी हुई है, जिसके कारण तीर्थयात्रियों को बर्फ के बीच लगभग तीन किमी की कठिन चढ़ाई करनी पड़ी। बावजूद इसके, श्रद्धालुओं के हौसले और भक्ति में कोई कमी नहीं दिखी।

13 किमी की पैदल यात्रा और जयकारों की गूंज

गोविंदघाट गुरुद्वारे से श्रद्धालुओं का जत्था 13 किमी की पैदल यात्रा कर शाम को घांघरिया पहुंचा। रास्ते भर “वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह” और “जो बोले सो निहाल” के जयकारों से वातावरण भक्तिमय बना रहा।

कपाट खुलने के विशेष कार्यक्रम

सुबह 9:30 बजे - गुरुग्रंथ साहिब का सतखंड से दरबार में आगमन

सुबह 10 बजे - सुखमणि साहिब का पाठ

11:30 से 12:30 बजे - शबद कीर्तन

दोपहर 12:35 बजे - पहली अरदास

दोपहर 1:00 बजे - हुकुमनामा

शटल सेवा से यात्रियों को राहत

गोविंदघाट में बनी अलकनंदा नदी पर नए बेली ब्रिज से छोटे-बड़े वाहन पुलना तक पहुंच पा रहे हैं। हालांकि यात्रियों को एप्रोच रोड की सुरक्षा के कारण करीब चार किमी की दूरी शटल सेवा से तय करनी पड़ रही है। किराया 50 रुपये निर्धारित किया गया है।

भ्यूंडार घाटी में लौटी रौनक

श्रद्धालुओं की चहलकदमी से भ्यूंडार घाटी में रौनक लौट आई है। स्थानीय लोगों के लिए यह यात्रा रोजगार का भी माध्यम बनती है। हिमालय की इस दुर्गम यात्रा में 19 किमी का ट्रैक शामिल है, जो भक्तों के लिए एक चुनौतीपूर्ण लेकिन पवित्र अनुभव होता है।

हेमकुंड साहिब: आस्था और इतिहास

हेमकुंड साहिब की खोज 1885 में लुधियाना के पत्रकार तारा सिंह नरोत्तम ने की थी। उन्होंने 'विचित्र नाटक' में गुरु गोविंद सिंह द्वारा किए गए तप का उल्लेख पढ़ा और इस स्थल की जानकारी पंजाब तक पहुँचाई। बाद में 1934 में हवलदार बाबा मोदन सिंह के प्रयासों से यात्रा की औपचारिक शुरुआत हुई।