
Prabhat Vaibhav, Digital Desk : कल रविवार को जीतिया व्रत रखा जाएगा। इसे कई जगहों पर जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। हर साल यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। पंचांग के अनुसार, शनिवार को नहाय-खाय की परंपरा निभाई जाएगी और रविवार को महिलाएं संकल्प लेकर यह व्रत रखेंगी।
इस उपवास का महत्व संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि से जुड़ा है। माताएं निर्जला व्रत रखकर अपने बच्चों की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं। यह व्रत बेहद कठोर माना जाता है, इसलिए इसके कुछ नियम और परंपराओं का पालन करना जरूरी होता है।
जीतिया व्रत के 11 जरूरी नियम
- व्रत से एक दिन पहले ब्रह्म मुहूर्त में जल, अन्न और फल ग्रहण किया जाता है।
- कई जगह महिलाएं गेहूं की रोटी की जगह महुआ या मरुआ के आटे की रोटी खाती हैं।
- परंपरा के अनुसार व्रत से पहले नोनी का साग भी खाया जाता है।
- नहाय-खाय के दिन से ही तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांस और मछली का त्याग किया जाता है।
- अष्टमी के दिन पूरा दिन और रात निर्जला व्रत किया जाता है। शाम को राजा जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है।
- इस दौरान महिलाएं चाकू और कैंची जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग नहीं करतीं।
- मिट्टी और गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा बनाकर उस पर लाल सिंदूर चढ़ाया जाता है।
- व्रत वाले दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है।
- व्रत पारण के समय महिलाएं लाल रंग का धागा या लॉकेट गले में धारण करती हैं।
- पूजा में सरसों का तेल और खाल अर्पित किया जाता है।
- पारण के बाद वही तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप लगाया जाता है।