फलों का राजा : स्वाद, सुगंध और सद्गुण में ख़ास है आम

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डेस्क। आम को फलों के राजा और देश के राजकीय फल होने का तमगा प्राप्त है। दरअसल, आम है ही इतना ख़ास। संस्कृत और हिंदी कवियों से लेकर शायरों तक ने आम के स्वाद, सुगंध, सद्गुण और उसकी महिमा का खूब बखान किया है। इतिहासकारों ने भी आम और उसकी किस्मों का जिक्र किया है। लोक गीतों और कहावतों में भी आम या रसराज के वर्णन मिलते हैं। मंगल कार्यों या उत्सवों में आम की पत्तियों की सजावट शुभ मानी जाती है। 

भारतीय लोक मानस में आम सिर्फ फल ही नहीं है। ये एक सांस्कृति है। तालाबों और नदियों की तरह आम का वृक्ष भी अति पवित्र माना जाता है। तभी तो आज भी जन मानस आम के पेड़ में बौर आने से लेकर फल लगने, बड़े होने और पकने तथा पट्टियां झड़ने तक की क्रियाओं का बेसब्री से इंतिजार रहता है। आम के बारे में एक और ख़ास बात है कि जगह-जगह के आमों की भी अपनी खास कहानी है। दशहरी चौसा और लंगड़ा तो हर आम और ख़ास के सामने इतराते हैं।

भारतीय जनमानस या कहें की हर आदमी की यादों में आम से जुड़ा कोई न कोई किस्सा जरूर होगा। आम के पेड़ में टिकोरे का लगना, धीरे धीरे बड़ा होना, सींकर गिरना, आम तोड़ने की कोशिश में पेड़ से गिरना हो या किसी दुसरे के बगीचे से आम चोरी में पकड़ा जाना। अवध क्षेत्र में तो आम के बिना दाल बंटी ही नहीं है। चैत माह से लेकर भादौं माह तक दाल में आम डाला जाता है और बाकी आठ महीने आम की खटाई। अमावट से लेकर आम के न जाने कितने व्यंजन बनते हैं। आम के बारे में ये कहना समीचीन होगा कि आम किसी न किसी रूप में पूरे लोक जीवन में शामिल रहता है।

वैसे तो आम की सैकड़ों किस्मे हैं, लेकिन लंगड़ा, दशहरी, तोतापरी, सफेदा और चौंसा जैसी कुछ ख़ास किस्में इस समय बाजारों में धूम मचाये हुए हैं। इनकी मांग पूरी दुनिया में है। आम की किस्मों और उनके जन्म स्थान को लेकर भी कई अवधारणाएं हैं। इतिहासकार योगेश प्रवीन ने लिखा है कि आम की जो मशहूर किस्मे हैं, उन्हें वहीं का नाम दे दिया गया, जहां उसका पेड़ पहली बार उगा या नजर में आया। दशहरी को यह नाम काकोरी के पास दशहरी गांव की वजह से मिला। दशहरी का दो सौ साल पुराना मूल पेड़ आज भी दशहरी गांव में मजूद है।

जानकारी के अनुसार अवध के नवाब ने जब उस पेड़ के फल खाए तो उन्हें बेहद अच्छा लगा और उन्होंने उसके और भी पेड़ उगवाए। दशहरी आम पर नवाबों का खानदान उन पर अपना हक समझता था। इसीलिए आम के मौसम में पेड़ों को घेर दिया जाता था, ताकि आम चोरी न हो जाएं। तमाम बंदिशों के बावजूद दशहरी ने पूरी दुनिया में सिक्का जमा लिया। इसका श्रेय मलीहाबाद के पठान जमींदार ईसा खान को  जाता है। ईसा खान ने नवाबों के बाग के माली को पटाकर एक पौधा हासिल कर लिया और फिर एक से दो और दो से कई पौधे हो गए। इस तरह दशहरी खास से आम हो गया।

इसी तरह आम की लोकप्रिय नस्ल चौसा की भी कहानी है। चौंसा आम की प्रजाति मलीहाबाद में ही विकसित हुई। चौसा का नाम भी संडीला स्थित एक गांव चौसा के नाम पर रखा गया। कहा जाता है कि वहां एक बार एक जिलेदार ने अपने दौरे के दौरान गांव के एक पेड़ का आम खाया। लजीज स्वाद और जुदा खुशबू के कारण उसे यह आम बहुत पसंद आया। उसने इसकी सुचना संडीला के नवाब को दी। नवाब साहब बागवानी के शौक़ीन थे। उन्होंने चौसा की नस्ल को दुनिया में फैलाने का काम किया। इस तरह आज चौंसा आम की सुगंध पूरे दुनिया में फ़ैल गयी है।

इसी तरह लंगड़ा आम का मूल स्थान बनारस माना जाता है। जनश्रुतियों के मुताबिक़ बनारस के एक शिव मंदिर में एक साधु आम का पौधा लेकर आया था। उसे वहां के पुजारी को देकर उनकी सेवा करने को कहा। पुजारी ने उसे मंदिर के पीछे लगा दिया। पेड़ बड़ा हुआ तो उस पर बड़े मीठे और रसीले आम लगे। पुजारी के पास आने वाले श्रद्धालुओं से इसकी शोहरत फैलती गई। मंदिर का पुजारी लंगड़ा था, इसलिए इस आम को भी लंगड़ा कहा जाने लगा।

आम खाने और खिलाने की अपनी परंपरा है। पहले टोकरी भर आम पानी से भरी बाल्टी में रख दिया जाता था और पूरा परिवार उसके इर्दगिर्द बैठकर आमों के रस के साथ बातों का रस भी लेता था। बड़े बुजुर्ग बच्चों को हिदायत देते थे कि आम की चोपी निकालकर खाओ। आज भी बागवान अपनों को आम की दावत देते हैं। आजकल तो जगह जगह आम महोत्सव लगने लगे हैं।

इतिहासकार योगेश प्रवीन कहते हैं कि आम में स्वाद, सुगंध और सद्गुण तीनों हैं। अवध में तो यदि दाल में अमकली न डाली गई हो, तो दाल भी अपना स्वाद नहीं दिखाती। कहावत भी है - दाल अरहर की, खटाई आम की, तोले भर घी, रसोई राम की। शायर सुहैल काकोरवी ने तो आम पर शायरी की पूरी किताब ही 'आमनामा' लिख दी, जिसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। पुरखों के मुताबिक़ आम का सिर्फ फल ही नहीं, उसकी हर चीज काम आती है।

आम की गुठलियों, छाल और कोपलों का भी अपना महत्व है। आज भी शादी-ब्याह में वंदनवार आम की पत्तियों की ही शुभ मानी जाती है। यज्ञ-हवन में भी आम की लकडिय़ां और पत्ती ही इस्तेमाल होती है। आम के डतजनों व्यजन बनते हैं। आम के अचार तो जिक्र छिड़ते ही मुंह में पानी आ जाता है। काम से काम आम के दर्जन भर अंचार अलग अलग तरीके से बनाये जाते हैं। आम के अमावत के क्या कहने। आज तो मैंगो शेक, मैंगोड्रिंक्स, स्‍क्‍वैश, जैम, जैली आदि चीजें बनाए जाती हैं।

मिर्जा गालिब तो आम के प्रसिद्ध रसिया शायर के रूप में जाने जाते हैं। ग़ालिब ने अपनी शायरी में आम को 32 शेर समर्पित किए हैं। उनका ये शेर देखें - बारे आमों का कुछ बयां हो जाए, खामा नख्ले-रतब फिशां हो जाए। इसी तरह - साया इसका हुमां का साया है, खल्क पर वो खुदा का साया है।

गालिब की तरह अकबर इलाहाबादी भी आम के दीवाने थे। अकबर इलाहाबादी ने अपने दोस्त मुंशी निसार हुसैन को चिट्ठी लिखकर आम मंगाए थे -

नामा न कोई यार का पैगाम भेजिए, इस फस्ल में जो भेजिए तो बस आम भेजिए।  
ऐसा ज़रूर हो कि उन्हें रख के खा सकूँ, पुख़्ता अगरचे बीस तो दस ख़ाम भेजिए। 
मालूम ही है आप को बंदे का ऐडरेस, सीधे इलाहाबाद मिरे नाम भेजिए। 
ऐसा न हो कि आप ये लिक्खें जवाब मे, तामील होगी पहले मगर दाम भेजिए।। 
 

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