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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अब तक आउटसोर्सिंग और संविदा नियुक्तियां अहम रही हैं। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा इन नियुक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिए जाने से चिकित्सा विभाग के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।

नियमित नियुक्तियों के बावजूद बड़ी संख्या में संविदा कर्मी

हाल के वर्षों में सरकार ने स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग में बड़ी संख्या में स्थायी नियुक्तियां की हैं। फिर भी, अब तक विभाग में आउटसोर्स और संविदा आधार पर वार्ड ब्वाय, तकनीशियन से लेकर डॉक्टर तक बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। पूर्णकालिक भर्ती प्रक्रिया पूरी होने तक इन कर्मियों की आवश्यकता बनी रहती है।

प्रतिबंध का सीधा असर मरीजों पर

सरकार के इस नए निर्णय का सीधा प्रभाव मरीजों पर पड़ेगा। उदाहरण के लिए, दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एकमात्र रेडियोलाजिस्ट डॉ. सौरभ सच्चर का अनुबंध 30 मई को समाप्त हो रहा है। संविदा भर्ती पर प्रतिबंध के कारण उनके अनुबंध का विस्तार संभव नहीं होगा, जिससे आइपीडी में अल्ट्रासाउंड सेवा प्रभावित होगी।

महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति की तत्काल आवश्यकता

अस्पताल की फिजियोथेरेपी यूनिट में छह स्वीकृत पदों के विरुद्ध केवल एक संविदा कर्मचारी मौजूद है। अन्य कर्मचारियों के सेवानिवृत्त या स्थानांतरण के कारण स्थिति चिंताजनक हो गई है। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने दो फिजियोथेरेपिस्ट की मांग की है, लेकिन प्रतिबंध के कारण यह मामला अधर में लटक गया है।

प्लास्टिक सर्जरी विभाग में भी संकट

प्लास्टिक सर्जन डॉ. शिवम डांग के विदेश जाने से विभाग में ऑपरेशन ठप होने की आशंका है। हालांकि एक महिला सर्जन उनकी जगह लेना चाहती हैं, लेकिन आउटसोर्सिंग भर्ती पर प्रतिबंध के चलते उनकी नियुक्ति प्रक्रिया जटिल हो गई है।

सरकार को भेजा गया प्रस्ताव

मामले की गंभीरता देखते हुए अपर निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आरएस बिष्ट ने शासन से अपील की है कि स्वास्थ्य विभाग को इस प्रतिबंध से बाहर रखा जाए। सरकार ने प्रस्ताव पर सकारात्मक संकेत दिए हैं, जिससे जल्द राहत की उम्मीद है।