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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) को चुनौती देती जनहित याचिकाओं और प्रभावित लोगों की याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को तीन सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को तय की गई है।

याचिकाकर्ताओं के मुख्य तर्क

भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने UCC के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य में जनवरी से लागू इस कानून में कई ऐसे नियम हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुस्लिम समुदाय और लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

लिव इन रिलेशनशिप में जोखिम का मुद्दा

याचिकाओं में लिव इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन फॉर्म में पूर्व जानकारी देने की अनिवार्यता पर भी आपत्ति जताई गई है। प्रभावितों का कहना है कि इससे उनकी निजता भंग होने के साथ ही जानमाल का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। उन्होंने इस प्रावधान में तत्काल संशोधन करने की मांग की है।

उम्र और पंजीकरण नियमों पर विवाद

UCC में सामान्य विवाह के लिए लड़के की उम्र 21 और लड़की की उम्र 18 वर्ष निर्धारित है। वहीं, लिव इन रिलेशनशिप के लिए दोनों की उम्र 18 वर्ष रखी गई है। इसके अलावा, लिव इन रिलेशनशिप में बने संबंधों से पैदा हुए बच्चे कानूनी तौर पर वैध माने जाएंगे, जिससे भविष्य में कई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

तलाक प्रक्रिया पर भी सवाल

याचिकाओं में यह भी उल्लेख किया गया है कि विवाह से अलग होने के लिए लंबी न्यायिक प्रक्रिया और भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, जबकि लिव इन रिलेशनशिप खत्म करने के लिए मात्र एक प्रार्थना पत्र देकर 15 दिन में ही संबंध समाप्त किया जा सकता है। इस असंतुलन के कारण विवाह संस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उपेक्षा

कुछ याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि UCC में मुस्लिम समुदाय के रीति-रिवाजों और कुरान के नियमों की स्पष्ट अनदेखी की गई है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।

आने वाले परिणामों को लेकर चिंता

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस कानून से भविष्य में विवाह संस्था कमजोर पड़ सकती है, क्योंकि युवा पीढ़ी विवाह की जटिलताओं से बचने के लिए लिव इन रिलेशनशिप को अधिक प्राथमिकता दे सकती है।

हाई कोर्ट ने इन सभी तर्कों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। फिलहाल इस विवादित मामले पर राज्य सरकार ने अपना पक्ष प्रस्तुत कर दिया है, जबकि केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया आना अभी बाकी है।