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इस धर्म नगरी में परम ज्ञानी रावण की पूजा से होता है दशहरा उत्सव का प्रारंभ, नगर में निकलती है लंकाधिपति की बरात

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धर्म डेस्क। तीर्थराज प्रयाग की महिमा निराली हैं। इस नगर के बासिन्दे भी मस्त-मौला हैं। प्रयागराज के लोग गंगा में बाढ़ आने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। रिश्तेदारों और दोस्तों को फोनकर बाढ़ देखने के लिए बुलाते हैं। यहां पर पढ़ने आने वाले छात्र इलाबादे कहलाते हैं और दाल-भात और चोखा खाकर आईएएस और पीसीएस बनते हैं। नेता बनते हैं। कहा जाता है कि एक बार हनुमान जी विद्यार्थियों से मिलने प्रयाग आये। दाल-भात और चोखा खाकर संगम तीरे बंधे पर लेटकर आराम करने लगे। आज भी हनुमान जी बाँध पर लेते हुए विद्यार्थियों को आशीर्वाद दे रहे हैं। इसी तरह इस धर्म नगरी की हर लीला न्यारी है। अब दशहरा उत्सव को ही लीजिये। प्रयागराज में दशहरा उत्सव का प्रारंभ रावण पूजा और बारात से होता है।

हां, प्रयागराज में प्राचीनकाल से ही रावण की बारात निकाले जाने की अनूठी परम्परा है। शनिवार की शाम जब रावण हाथी पर बैठकर अपनी बारात लेकर निकला, तो उसे देखने और आशीर्वाद लेने के लिये सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा। प्रयागराज में रावण की बरात व शोभायात्रा का आयोजन सैकड़ों वर्ष पुरानी कटरा रामलीला कमेटी की ओर से पूरे वैभव के साथ किया जाता है। इस अनोखी बारात में रावण रथ पर बनाए गए हाथी पर सवार होकर बारात की अगुवाई करता है। ढोल नगाडे़ के साथ राक्षसों का वेष धारण किये उसके गण और परिवार के लोग बाराती बनते हैं। इस बारात मे बैंड बाजा, हाथी घोडे़ और हजारों की संख्या में रावण भक्त शामिल होते हैं।  

शारदीय नवरात्र से शुरू होने वाले प्रयागराज के दशहरा उत्सव में सबसे पहले मुनि भारद्वाज के आश्रम में लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है। इसके बाद यह भव्य बारात पूरे नगर का भ्रमण करती है। महाराजा रावण की ऐसी भव्य व अनूठी बारात जो दुनिया में दूसरे किसी जगह देखने को नहीं मिलती।इस अनूठी और भव्य बारात में महाराजा रावण चांदी के सिंघासन पर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं।

तीर्थराज प्रयाग में रावण की बारात निकाले जाने के पीछे एक पुरानी कथा है। इस कथा के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान राम रावण का वध करके पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे थे तो विमान भारद्वाज आश्रम मे रुका था। इस दौरान भगवान राम ने जब पत्नी सीता के साथ भारद्वाज मुनि के दर्शन करना चाहा तो तो ऋषिवर ने उनसे मिलने से मना कर दिया था। दरअसल, भगवान राम ने ब्राहमण रावण की हत्या की थी और उनके ऊपर ब्रह्म हत्या का पाप था। ब्रह्म हत्या पाप का भान होने पर भगवान राम ने भारद्वाज ऋषि से क्षमा मांगी और यही पर स्थित शिव कुटी घाट पर एक लाख बालू के शिव लिंगो की स्थापना की और शिव भक्त रावण से क्षमा याचना की थी।  

कथा के मुताबिक़ रावण ने भगवान राम को क्षमा कर दिया। इससे प्रसन्न होकर भगवान राम ने उसे वरदान दिया कि इस तीर्थ नगरी में रावण की पूजा होगी और उस की बारात व शोभा यात्रा भी निकाली जायगी। उसी समय से धूम धाम से इस नगरी में रावण की बारात बारात निकाले जाने की परम्परा चली आ रही है। रावण की इस बारात का लोगों को साल भर इंतजार रहता है। इसी बारात के साथ प्रयाग में दशहरा उत्सव प्रारंभ हो जाता है।  
 

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