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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी नहीं बजा है, लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी ने पहले ही जोर पकड़ लिया है। मतदाता सूची और वक्फ कानून को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है।

हाल ही में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून को “कूड़ेदान में फेंकने” वाला बयान दिया, जिस पर बीजेपी के राज्यसभा सांसद और प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हमला बोला। उन्होंने तेजस्वी के बयान को संविधान और लोकतंत्र का अपमान बताया।

इस पर तेजस्वी यादव ने भी सोमवार को जमुई में जोरदार पलटवार किया। उन्होंने खुद को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताते हुए कहा कि बीजेपी केवल धर्म के नाम पर राजनीति करती है। उन्होंने कहा, “हम श्रीकृष्ण के वंशज हैं। भगवद गीता हमारी विरासत है। अगर कोई पिछड़े समाज का व्यक्ति गीता की कथा कहे, तो बीजेपी के लोग उसका विरोध कर देते हैं।”

तेजस्वी ने सुधांशु त्रिवेदी के सवालों पर भी जवाब दिया। उन्होंने कहा, “क्या सुधांशु त्रिवेदी या उनके परिवार का आज़ादी की लड़ाई में कोई योगदान है? मेरे पिता जेल गए हैं, आपातकाल का विरोध किया है। इन लोगों को इतिहास याद दिलाने की ज़रूरत है।”

तेजस्वी ने स्पष्ट कहा कि बिहार में वक्फ कानून ऐसे ही लागू नहीं होगा। अब राज्य में धर्म और जाति नहीं, बल्कि काम और मुद्दों के आधार पर राजनीति होगी।

पृष्ठभूमि क्या है?

बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी ने तेजस्वी के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा था कि पटना के गांधी मैदान जैसे ऐतिहासिक स्थल पर संविधान द्वारा पारित कानून को “कूड़ेदान में फेंकने” की बात करना लोकतंत्र का अपमान है। उन्होंने यह भी कहा कि आज जब आपातकाल की 50वीं बरसी मनाई जा रही है, तब विपक्ष के नेताओं को लोकतांत्रिक मर्यादाएं याद रखनी चाहिए।

उन्होंने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए यहां तक कह दिया कि “अगर समाजवाद को नमाजवाद कहा जाए तो गलत नहीं होगा।”

बिहार में ये बयानबाज़ी केवल एक राजनीतिक तकरार नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों की बिसात पर बिछ रही चालों का संकेत है।