img

Prabhat Vaibhav,Digital Desk : विटिलिगो जिसे आम बोलचाल में सफेद दाग, श्वेत कुष्ठ या ल्यूकोडर्मा कहा जाता है, एक ऑटोइम्यून रोग है। इस स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली गलती से उन स्वस्थ कोशिकाओं (मेलानोसाइट्स) पर हमला करने लगती है, जो हमारी त्वचा को उसका रंग देने वाला पिगमेंट मेलानिन बनाती हैं। जब ये कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, तो त्वचा पर सफेद धब्बे उभरने लगते हैं।

यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन आमतौर पर 30 की उम्र से पहले ही इसके लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ लोगों में यह शरीर के एक हिस्से तक सीमित रहती है, तो कुछ में धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल सकती है। इस बीमारी को लेकर समाज में जागरूकता की भारी कमी है, जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति को मानसिक तनाव, शर्मिंदगी और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

वर्ल्ड विटिलिगो डे (World Vitiligo Day 2025) के मौके पर हम आपको बता रहे हैं इससे जुड़े पांच आम मिथक और उनसे जुड़ी सच्चाई:

मिथक 1: विटिलिगो छूने से फैलता है।
सच्चाई:
यह पूरी तरह गलत है। विटिलिगो संक्रामक नहीं है। यह छूने, साथ खाना खाने, खून के संपर्क, या यौन संबंध से नहीं फैलता। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, न कि कोई संक्रामक रोग।

मिथक 2: मछली और दूध एक साथ खाने से विटिलिगो हो जाता है।
सच्चाई:
यह सिर्फ एक प्रचलित भ्रांति है। अब तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जो इस बात को सिद्ध कर सके। विशेषज्ञ मानते हैं कि विटिलिगो किसी भी खाने-पीने के कॉम्बिनेशन से नहीं होता।

मिथक 3: सभी सफेद दाग विटिलिगो की वजह से होते हैं।
सच्चाई:
सभी सफेद दाग विटिलिगो के कारण नहीं होते। इनके पीछे कई अन्य कारण हो सकते हैं जैसे जलने के निशान, फंगल इंफेक्शन (टिनिया वर्सिकलर), नेवस, या कुष्ठ रोग आदि।

मिथक 4: अधिक साबुन के इस्तेमाल से सफेद दाग हो सकते हैं।
सच्चाई:
यह धारणा पूरी तरह से गलत है। विटिलिगो बाहरी चीजों जैसे साबुन या केमिकल के कारण नहीं होता, बल्कि यह शरीर की आंतरिक ऑटोइम्यून प्रक्रिया से जुड़ा है।

मिथक 5: विटिलिगो का निदान करना मुश्किल है।
सच्चाई:
विटिलिगो की पहचान करना मुश्किल नहीं है। त्वचा पर इसके विशेष प्रकार के सफेद धब्बे — बिना स्केल के, चॉक जैसे और स्पष्ट किनारों वाले — इसके लक्षण होते हैं जिन्हें डॉक्टर आसानी से पहचान सकते हैं।