Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड में सर्दी तेज होते ही सड़क हादसों का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है। पहाड़ों की ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों से लेकर मैदानी इलाकों तक, हर दिन कहीं न कहीं दुर्घटनाएँ हो रही हैं। कोहरे, ठंड और फिसलन के अलावा टूटी सड़कें, सुरक्षा इंतजामों की कमी और विभागीय लापरवाही इन हादसों की सबसे बड़ी वजह बनकर सामने आ रही है।
कई जगहों पर टूटे क्रैश बैरियर मौत को खुला न्योता दे रहे हैं, तो कहीं सड़कों से गायब साइनबोर्ड अंधेरे में वाहनों को दुर्घटना की ओर धकेल रहे हैं। सैकड़ों स्थान ऐसे हैं जहाँ खतरनाक गहरी खाइयों के किनारे किसी भी तरह की सुरक्षा मौजूद नहीं है। विभागीय दफ्तरों में फाइलें भले ही दौड़ रही हों, लेकिन जमीनी हालात बताने के लिए काफी हैं कि हर मोड़ पर यात्रियों की जिंदगी जोखिम में है।
544 खतरनाक प्वाइंट्स, लेकिन सुधार की रफ्तार धीमी
देहरादून, टिहरी, चमोली और हरिद्वार जिलों में किए गए सर्वे में 544 ऐसे पॉइंट चिह्नित हुए जहाँ हादसे होने की संभावना सबसे ज्यादा है। इन जगहों पर टूटी सड़क-मार्किंग, गायब साइनबोर्ड, टूटे क्रैश बैरियर, गड्ढे, ब्लाइंड कर्व और डिजाइन की गंभीर खामियाँ मिलीं। फिर भी इन प्वाइंट्स पर सुधार कार्य बेहद सुस्त गति से चल रहे हैं।
लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता राजेश कुमार का कहना है कि समिति की सिफारिशों के आधार पर सुधार कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अभी भी चिंताजनक है।
सवाल जो अब भी जवाब मांगते हैं—
544 खतरनाक स्थानों में से कितने ठीक हुए?
प्रत्येक हादसे के बाद जिम्मेदारी किसकी तय हुई?
दुर्घटना स्थलों की मरम्मत के लिए क्या ठोस योजना बनी?
क्या नोटिस या चेतावनी के बाद कोई काम शुरू हुआ?
लापरवाही की जांच के लिए कोई समिति बनी?
आम जनता के लिए शिकायत दर्ज कराने का क्या इंतजाम है?
हाल के बड़े हादसे—
टिहरी बस हादसा: 70 मीटर गहरी खाई में बस गिरने से 5 की मौत।
हल्द्वानी: एक ही दिन में तीन हादसे, तीन लोगों की जान गई।
चमोली: बद्रीनाथ हाईवे पर बाइक और कार की टक्कर में दो युवकों की मौत।
ऋषिकेश–चमोली: कई वाहन खाई में गिरने की घटनाएँ दर्ज।
सड़क सुरक्षा की प्रमुख कमियाँ—
सुरक्षा बैरियरों की भारी कमी
नियमित मरम्मत व रखरखाव का अभाव
रात में सड़क लाइटिंग बेहद कमजोर
संकरी सड़कें और खतरनाक ब्लाइंड मोड़
ओवरस्पीडिंग और यातायात नियमों की अनदेखी
डिजिट इन्फो—
69.5: उत्तराखंड में प्रति 100 दुर्घटनाओं पर औसत मौत (राष्ट्रीय औसत 36)
21,625: 10 साल में सड़क हादसों में मौतें
2-3 गुना: पहाड़ी जिलों में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मौतें
40%: दुर्घटना संभावित स्थानों पर साइनबोर्ड और बैरियर गायब




